पंजाब यूनिवर्सिटी की सीनेट (Senate) और सिंडिकेट (Syndicate) को केंद्र सरकार ने भंग कर दिया है। इसके बाद पंजाब सरकार और केंद्र सरकार के बीच बड़ा विवाद खड़ा हो गया है।
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस फैसले को “गैर-संवैधानिक और पंजाब विरोधी” बताया है और कहा है कि राज्य सरकार अब इस मामले में कानूनी लड़ाई लड़ेगी।
केंद्र का फैसला और उसका समय
31 अक्टूबर 2024 को पंजाब यूनिवर्सिटी की पुरानी सीनेट का कार्यकाल खत्म हो गया था।
नई सीनेट का चुनाव नहीं हुआ, और फिर 1 नवंबर 2025 (पंजाब दिवस) के दिन केंद्र सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर सीनेट और सिंडिकेट दोनों को भंग (dissolve) कर दिया।
केंद्र ने कहा कि यूनिवर्सिटी का कामकाज सही तरह चलाने के लिए यह कदम उठाना ज़रूरी था।
पंजाब सरकार का विरोध
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि यह फैसला गैर-कानूनी है और केंद्र को ऐसा करने का अधिकार नहीं है।
उन्होंने कहा कि पंजाब यूनिवर्सिटी का मामला पंजाब पुनर्गठन एक्ट 1966 और पंजाब यूनिवर्सिटी एक्ट 1947 के तहत आता है, यानी इसका अधिकार पंजाब सरकार के पास है, न कि केंद्र के पास।
सीएम भगवंत मान के 6 मुख्य बयान
- केंद्र को अधिकार नहीं: पंजाब यूनिवर्सिटी को भंग करने का अधिकार केंद्र को नहीं, बल्कि पंजाब सरकार को है।
- नोटिफिकेशन गैरकानूनी है: विधानसभा या संसद में संशोधन किए बिना सिर्फ नोटिफिकेशन जारी करना पूरी तरह असंवैधानिक है।
- हरियाणा की एंट्री की कोशिश: मान ने कहा कि पहले भी हरियाणा ने अपने कॉलेजों को पंजाब यूनिवर्सिटी से जोड़ने की कोशिश की थी, अब उसी बहाने से दोबारा एंट्री की जा रही है।
- सीनेट में हरियाणा के लोगों की एंट्री: उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार सीनेट में अपने लोगों को भेजने की योजना बना रही थी, जिसका हमें पहले से पता चल गया था।
- कानूनी लड़ाई का ऐलान: पंजाब सरकार अब इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाएगी।
- धक्केशाही नहीं चलेगी: मान ने कहा कि “पहले बीबीएमबी और अब यूनिवर्सिटी – भाजपा लगातार पंजाब की प्रॉपर्टी और हकों पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है, जो बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”
पंजाब यूनिवर्सिटी का इतिहास और महत्व
पंजाब यूनिवर्सिटी की शुरुआत लाहौर (अब पाकिस्तान) में हुई थी।
आजादी के बाद इसे पहले होशियारपुर और फिर चंडीगढ़ स्थानांतरित किया गया।
पंजाब सरकार हर साल इस यूनिवर्सिटी को बजट से ग्रांट (financial grant) देती है।
इस वजह से पंजाब का दावा है कि यह राज्य की विरासत (heritage) और अधिकार (right) है।
सीनेट क्या होती है?
सीनेट यूनिवर्सिटी की सबसे ऊंची संस्था होती है, जो सभी बड़े फैसले लेती है।
इसका काम होता है –
- यूनिवर्सिटी की policies बनाना,
- administrative decisions लेना,
- और यूनिवर्सिटी का लोकतांत्रिक संचालन करना।
इसी सीनेट के चुनाव हर कुछ साल में होते हैं, लेकिन इस बार चुनाव न होने के कारण अब विवाद और गहरा हो गया है।
हरियाणा से जुड़ा विवाद
यह विवाद नया नहीं है।
हरियाणा लंबे समय से अपने कॉलेजों को पंजाब यूनिवर्सिटी के अधीन करने की मांग करता रहा है।
पंजाब का कहना है कि ऐसा करने से यूनिवर्सिटी की “पंजाबी पहचान और स्वायत्तता (autonomy)” खत्म हो जाएगी।
सीएम मान का आरोप है कि हरियाणा सरकार सीनेट में अपने प्रतिनिधियों को लाने की कोशिश कर रही थी, जिससे यूनिवर्सिटी के फैसलों पर उसका असर बढ़ जाए।
केंद्र का पक्ष (संभावित तर्क)
केंद्र का कहना है कि सीनेट का कार्यकाल खत्म हो चुका था और चुनाव न होने की वजह से यूनिवर्सिटी का प्रशासनिक काम रुक सकता था।
इसलिए अस्थायी तौर पर यह कदम उठाना पड़ा ताकि यूनिवर्सिटी का सिस्टम चलता रहे।
अब आगे क्या होगा
पंजाब सरकार ने साफ कर दिया है कि वह इस फैसले को कोर्ट में चुनौती देगी।
राज्य सरकार इसे पंजाब की “शैक्षणिक और सांस्कृतिक विरासत” से जुड़ा मामला बता रही है।
अब देखना होगा कि यह मामला राज्य बनाम केंद्र के अधिकार क्षेत्र की कानूनी लड़ाई में कैसे आगे बढ़ता है।
- केंद्र ने पंजाब यूनिवर्सिटी की सीनेट और सिंडिकेट भंग की।
- पंजाब सरकार ने इसे “पंजाब विरोधी और गैर-कानूनी” बताया।
- भगवंत मान बोले — “पंजाब यूनिवर्सिटी हमारी विरासत है, इसे किसी भी कीमत पर छीने नहीं देंगे।”
- अब यह विवाद कोर्ट तक जाने वाला है।
